आज सावन के बादलों ने भी दगा दे गया... घटा छा कर भी बरसात की एक बूंद न गीरी! देकर दस्तक मेरे दिल की दीवार में मेरा मेहबूब मुझसे रूठा ही रहा। कहीं फिर ना सावन निकल यू पड़े, जों तितलियां फूल पर से उड़ जाती है। बता गुल यूहीं कभी खिलता है क्या? यू छूकर भी मन को कोई चलता है क्या? बरस ताकने से फिर मिला है ये सावन! चलों प्यार की दो बातें तो कर लें। दो चाहने वाले, और एक ये सावन। रिमझिम सी बारिश और मोहब्बत के मौसम! लेखक - मों. आफताब आलम ©सर्वाधिकार सुरक्षित