हमने तो एक दीप को भी माना चांद सा... कभी अंधेरी रातों को दीपों के सहारे रहा हूं मैं। जब चली जाती थी चांद भी तन्हा छोड़ हमें इसी दीपक की रौशनी तले रहा हूं में....। क्यों ना हो शिद्दत से इससे मोहब्बत मुझको। रौशनी मेरी ज़िन्दगी को दिया है इसने.....। कल तलक ख्वाहिश थी कि एक सितारा भी हो मेरा। आज है आरज़ू कि , दीपक ही बने सहारा है मेरा....।