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Showing posts from 2018

सावन

आज सावन के बादलों ने भी दगा दे गया... घटा छा कर भी बरसात की एक बूंद न गीरी! देकर दस्तक मेरे दिल की दीवार में मेरा मेहबूब मुझसे रूठा ही रहा। कहीं फिर ना सावन निकल यू पड़े, जों तितलियां फूल पर से उड़ जाती है। बता गुल यूहीं कभी खिलता है क्या? यू छूकर भी मन को कोई चलता है क्या? बरस ताकने से फिर मिला है ये सावन! चलों प्यार की दो बातें तो कर लें। दो चाहने वाले, और एक ये सावन। रिमझिम सी बारिश और मोहब्बत के मौसम!                         लेखक - मों. आफताब आलम                             ©सर्वाधिकार सुरक्षित

मोहब्बत

मोहब्बत की किताबों पर नजर दौड़ा रहा था मैं..... तुम्हीं तुम थे किताबों में ख्यालों में जैसी हो!

फलक

फलक से तोड़ लाया हूं अब अलग एक ज़िद है उनकी...    सितारे मैं नहीं लेती मुझे तो चांद लेकर दो!

इश्क़

क्या कह गई किसी की ग़ज़ल कुछ न पुछिए, लफ़्ज़ों की सीढ़ियों से चढ़ता हुआ सा इश्क़!

इश्क़

इश्क़ की बात है दोस्तों तहजीब से कीजिए... महज फरवरी की दिल्लगी मोहब्बत नहीं होती!

रौशन है ये बगिया

नजर से छुप नहीं सकता जहां रौशन हो किरणों का... ये दिल जीतने का आपका अंदाज़ अच्छा है, ये बगिया आपकी ही तो आवाज से खिलती है!🌷 Dedicated to Raushan Mishra

चांद

रात दुल्हन बनी बैठी थी और हम चादर लपेटे हुए, आसमां सितारों से सजी थी और चांद से लिपटे हुए !